घर में सुख-शांति-समृद्धि
वास्तुदेव विश्वकर्मा पूजन
यदि आपको अपने घर में शांति अनुभव नहीं होती, निरन्तर ऐसा आभास होता है, कि घर में कुछ कमी है। घर में उन्नति नहीं हो रही है, घर में प्रवेश करते ही कुछ अजीब लगता है, यदि आपके साथ ऐसा है, वास्तुकला की दृष्टि से आपका भवन पूर्ण नहीं है, तो इसका भी उपाय स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने प्रदान किया है। वह है ‘विश्वकर्मा प्रयोग’, जिसके द्वारा आप अपने घर में व्याप्त आधि-व्याधि मिटा सकते हैं और घर को सुख, शांति, सौभाग्य, धन-धान्य, यश, प्रतिष्ठा आदि से भर सकते हैं।
क्या आप मकान का निर्माण कराने जा रहे हैं? यदि हां, तो क्या आपका मकान वास्तुशास्त्र की दृष्टि से पूर्ण है? इसे एक जरूरी लेख के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। यदि आप भवन का निर्माण करवाने जा रहे हैं, तो कुछ जरूरी बातों का ध्यान रख लीजिये, जिससे आप अपने घर में सुख-शांति स्थापित कर सकें।
क्योंकि भवन का निर्माण कराना इतना आसान नहीं है, यह ऐसा नहीं है, कि बस बाजार गये, सामान खरीद लाये और पसंद नहीं आया, तो बदल लिया। घर के सम्बन्ध में यह इतना सहज नहीं हो पाता, कि अनुकूलता नहीं मिली, तो इसे बेचा, दूसरा खरीद लिया। एक सामान्य व्यक्ति जीवन भर पूंजी इकठ्ठी करता है, अतः चाहता है, कि वह जिस स्थान को खरीदे, वह पूर्णतः उसके अनुकूल हो, क्योंकि वह तो अपने पूरे जीवनकाल में बहुत ही कठिनाई से एक भवन निर्माण करा पाता है, जिसको वास्तु शास्त्र की दृष्टि से पूर्ण होना ही चाहिए।
यद्यपि कुछ लोगों ने भवनों का निर्माण अपने स्वार्थ हेतु कर वास्तुकला के महत्व को गौण कर दिया है परन्तु यदि भवन का निर्माण शास्त्रोक्त विधि से न हुआ हो, तो उस भू स्वामी को रोग-शोक, भौतिक तथा आध्यात्मिक अवनति के साथ-साथ घोर मानसिक अशांति व्याप्त रहती है। अनेक तत्त्वदर्शियों ने मानव जीवन में वास्तुशास्त्र की महत्ता स्वीकार की है और इसकी उपयोगिता की व्याख्या की है।
तत्त्वदर्शियों की व्याख्या के अनुसार व्यक्ति को ग्रहों का ज्योतिषीय अध्ययन करके ही गृह निर्माण के कार्य की ओर अग्रसर होना चाहिए, मात्र गृह निर्माण ही नहीं, वरन् भूमि चयन से लेकर निर्माण तक की समस्त प्रक्रियाएं एवं शुभ मुहूर्त में भूमि में शिला न्यास, वास्तु विधि से शांति एवं गृह प्रवेश तक का भी पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक होता है, ताकि व्यक्ति वास्तुकला के आधार पर स्वयं और परिवार हेतु भवन का निर्माण कराकर सुख-शांति स्थापित कर सके।
प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है, कि उसका घर स्वर्ग की तरह हो, जहां वह पूर्ण रूप से भौतिक सुख और मानसिक शांति प्राप्त कर सके। वह उत्तम संतान, रोग रहित और धन-धान्य से युक्त जीवन तथा मान-प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का सदैव इच्छुक रहता है और वह इन सबको पाने के लिए प्रयत्नशील भी रहता ही है।
यह तो उसकी आंतरिक बातें हैं, जिन्हें वह घर में स्पष्टतः देखना चाहता है, परन्तु कुछ बातें वह व्यावहारिक रूप से ध्यान रखता है, कि घर का पड़ोस कैसा है, आसपास का वातावरण कैसा है, जल व्यवस्था तो ठीक है, यातायात का क्या माध्यम है?
वह इन विषयों को तो बाह्य रूप से देखकर जानकारी प्राप्त कर लेता है, परन्तु उस जमीन के विषय में वह नहीं जान पाता, कि वह कितनी फलप्रदायिनी है?
इसके लिए तो उसे किसी वास्तु शास्त्री के पास ही जाना पड़ता है या वह स्वयं में इतना ज्ञानी हो, कि वह यह जान सके, कि भूमि कैसी फलप्रदायिनी है? वास्तुकला का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है, अतः विस्तार में न जाकर यहां संक्षिप्त रूप में जानकारी प्रस्तुत की जा रही है, यदि व्यक्ति इन बातों को ही ध्यान में रख ले, तो भी उसे काफी अनुकूलता मिल सकती है।
भूमि चार प्रकार की होती है –
1.
ब्राह्मणी – सफेद रंग की मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणी कहलाती है, यह कुशा युक्त, सुगन्ध युक्त तथा मधुर रस से युक्त होती है। यह भूमि सुख-शांति प्रदान करती है।
2. क्षत्रिया – लाल रंग की मिट्टी, मूंज (शर) युक्त, कषाय रस तथा रक्त गन्ध युक्त होती है, यह भूमि क्षत्रिया कहलाती है। यह राज्यप्रदा होती है, अर्थात् राज्य सुख प्राप्त होता है।
3. वैश्या – हरे रंग की मिट्टी वाली, सस्य (अन्न) गंध वाली, कुश-***काश*** युक्त तथा अम्ल (खट्टा) रस युक्त भूमि वैश्या होती है। यह भूमि धनप्रदायिनी होती है।
4. क्षुद्रा – काले रंग की मिट्टी वाली, सब प्रकार की घास से युक्त, मद्य गंध तथा कटु (कडवा) रस युक्त भूमि क्षुद्रा कहलाती है। यह भूमि सब प्रकार से त्यागने योग्य होती है।
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